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"बर्फ को पिघलने दो / विजय वाते" के अवतरणों में अंतर
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11:30, 11 जून 2010 के समय का अवतरण
बातचीत चलने दो,
बर्फ़ को पिघलने दो ।
दर्द का तकाजा है,
आँख को मचलने दो ।
कुछ सितारे चमकेंगे,
आफ़ताब ढलने दो ।
ओस का करो स्वागत,
टार को तो गलने दो ।