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"ललित मोहन त्रिवेदी / परिचय" के अवतरणों में अंतर

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ललितमोहन त्रिवेदी
 
ललितमोहन त्रिवेदी
    ग्वालियर, मध्यप्रदेश, India
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    लेखन के बीज तो कच्ची उम्र में ही पड़ गए थे! द्वंद इतना कि पढ़ा विज्ञान ( M.Sc. Physics ) और मन रमा साहित्य में ! रामलीला के काव्यमय संवादों से शुरू हुई यात्रा कालेज तक आते आते मंच की ओर मुड गई !मंच से गहरा लगाव रहा सो गीतनाट्य लिखे, कम्पोज किए और सफलतापूर्वक मंचित भी किए !छंदबद्ध लेखन से जुडाव रहा सो गीत ,ग़ज़ल कविता सभी विधाओं में लिखा साथ ही आलेख और ललित निवंध भी लिखे ! आज लगभग सभी रचनाएं प्रकाशित एवं प्रसारित हैं , परन्तु अपने घोर आलसी और टालमटोल स्वभावके कारण लेखन की मात्रा अल्प ही रही और रही गुणवत्ता ? सो सुधी पाठक जानें क्योंकि मेरा ऐसा परम विश्वाश है कि पाठक ही लेखक का अन्तिम सत्य होता है !और अंततः ...... मेरा सबकुछ है .कुछ ना होने में ! तुम मुझे पड़ा रहने दो कोने में !!  
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ग्वालियर, मध्यप्रदेश, भारत
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लेखन के बीज तो कच्ची उम्र में ही पड़ गए थे! द्वंद इतना कि पढ़ा विज्ञान (M.Sc. Physics) और मन रमा साहित्य में ! रामलीला के काव्यमय संवादों से शुरू हुई यात्रा कालेज तक आते आते मंच की ओर मुड गई !मंच से गहरा लगाव रहा सो गीतनाट्य लिखे, कम्पोज किए और सफलतापूर्वक मंचित भी किए !छंदबद्ध लेखन से जुडाव रहा सो गीत ,ग़ज़ल कविता सभी विधाओं में लिखा साथ ही आलेख और ललित निवंध भी लिखे ! आज लगभग सभी रचनाएं प्रकाशित एवं प्रसारित हैं , परन्तु अपने घोर आलसी और टालमटोल स्वभावके कारण लेखन की मात्रा अल्प ही रही और रही गुणवत्ता ? सो सुधी पाठक जानें क्योंकि मेरा ऐसा परम विश्वाश है कि पाठक ही लेखक का अन्तिम सत्य होता है !और अंततः ...... मेरा सबकुछ है .कुछ ना होने में ! तुम मुझे पड़ा रहने दो कोने में !!  
  
 
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11:57, 12 जून 2010 के समय का अवतरण

ललितमोहन त्रिवेदी

ग्वालियर, मध्यप्रदेश, भारत

लेखन के बीज तो कच्ची उम्र में ही पड़ गए थे! द्वंद इतना कि पढ़ा विज्ञान (M.Sc. Physics) और मन रमा साहित्य में ! रामलीला के काव्यमय संवादों से शुरू हुई यात्रा कालेज तक आते आते मंच की ओर मुड गई !मंच से गहरा लगाव रहा सो गीतनाट्य लिखे, कम्पोज किए और सफलतापूर्वक मंचित भी किए !छंदबद्ध लेखन से जुडाव रहा सो गीत ,ग़ज़ल कविता सभी विधाओं में लिखा साथ ही आलेख और ललित निवंध भी लिखे ! आज लगभग सभी रचनाएं प्रकाशित एवं प्रसारित हैं , परन्तु अपने घोर आलसी और टालमटोल स्वभावके कारण लेखन की मात्रा अल्प ही रही और रही गुणवत्ता ? सो सुधी पाठक जानें क्योंकि मेरा ऐसा परम विश्वाश है कि पाठक ही लेखक का अन्तिम सत्य होता है !और अंततः ...... मेरा सबकुछ है .कुछ ना होने में ! तुम मुझे पड़ा रहने दो कोने में !!

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