'''निर्वाण षडकम'''
'''श्री आदि शंकराचार्य द्वारा विरचित'''
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ओ३म् शन्नो देवीरभिष्टयऽआपो भवन्तु पीतये।
शंयोरभि स्रवन्तु नः॥
- यजु. ३६.१२
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इस पूर्वोक्त मन्त्र से तीन बार आचमन करें.
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मनसा परिक्रमा मन्त्र
ॐ प्राची दिगग्निरधिपतिरसितो रक्षितादित्या इषवः .|तेभ्यो नमोऽधिपतिभ्यो नमो रक्षितृभ्यो नम इषुभ्यो नम एभ्योअस्तु . | योऽस्मान् द्वेष्टि यं वयं द्विष्मस्तं वो जम्भेदध्मः॥दध्मः अथर्ववेद ३/२७/१
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अथर्ववेद ३/२७/१
पूर्व दिशा का ईशानं यह अग्नि देव है,
रक्षक है आदित्य, न तुलना, एकमेव है.
तेरे विधान के न्याय-नियम, सब द्वेष शेष हों.
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ॐ दक्षिणा दिगिन्द्रोऽधिपतिस्तिरश्चिराजी रक्षितापितर इषवः | . तेभ्यो नमोऽधिपतिभ्यो नमो रक्षितृभ्यो नमइषुभ्यो नम एभ्यो अस्तु . | योऽस्मान् द्वेष्टि यं वयं द्विष्मस्तंवो जम्भे दध्मः.
अथर्ववेद ३/२७/२
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दिशि दक्षिण का ईशानं, अनुपम इन्द्र देव है,
रक्षक नियम-निबद्ध सहायक एकमेव है.
उस अधिपति को पुनि-पुनि प्रणाम को मन करता है,
वह सकल व्यवस्था सबके ही सुख की करता है.
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ॐ प्रतीची दिग्वरुणोऽधिपतिः पृदाकूरक्षितान्नमिषवः . तेभ्यो नमोऽधिपतिभ्यो नमो रक्षितृभ्यो नमइषुभ्यो नम एभ्यो अस्तु . योऽस्मान् द्वेष्टि यं वयं द्विष्मस्तंवो जम्भे दध्मः. अथर्ववेद ३/२७/३
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दिशि पश्चिम के ईशानं, अनुपम वरुण देव हैं,
तेरे विधान के न्याय-नियम हों, द्वेष शेष हों.
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ॐ उदीची दिक् सोमोऽधिपतिः स्वजो रक्षिताऽशनिरिषवः .तेभ्यो नमोऽधिपतिभ्यो नमो रक्षितृभ्यो नम इषुभ्यो नम एभ्योअस्तु . योऽस्मान् द्वेष्टि यं वयं द्विष्मस्तं वो जम्भेदध्मः. अथर्ववेद ३/२७/४
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दिशि उत्तर के ईशानं अनुपम सोम देव हैं,
दुरितानि निवारक , शांति प्रदाता एकमेव हैं.
उस अधिपति को पुनि-पुनि प्रणाम को मन करता है,
वह सकल व्यवस्था सबके ही सुख की करता है.
तेरे विधान के न्याय-नियम हों द्वेष शेष हों.
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ॐ ध्रुवा दिग्विष्णुरधिपतिः कल्माषग्रीवो रक्षितावीरुध इषवः .तेभ्यो नमोऽधिपतिभ्यो नमो रक्षितृभ्यो नम इषुभ्यो नम एभ्योअस्तु . योऽस्मान् द्वेष्टि यं वयं द्विष्मस्तं वो जम्भेदध्मः. अथर्ववेद ३/२७/५
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दिशि ध्रुव के ईशानं अनुपम य़े विष्णु देव हैं,
दृढ़ता, स्थिरता के दाता, वे एकमेव हैं .
उस अधिपति को पुनि-पुनि प्रणाम को मन करता है,
वह सकल व्यवस्था सबके ही सुख की करता है.
जो जन हमसे या हम जिनसे करते विद्वेष हों,
तेरे विधान के न्याय-नियम हों, द्वेष शेष हों.
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ॐ ऊर्ध्वा दिग्बृहस्पतिरधिपतिः श्वित्रो रक्षितावर्षमिषवः .तेभ्यो नमोऽधिपतिभ्यो नमो रक्षितृभ्यो नम इषुभ्यो नम एभ्योअस्तु . योऽस्मान् द्वेष्टि यं वयं द्विष्मस्तं वो जम्भेदध्मः.
अथर्ववेद ३ /२७/ ६
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ऊर्ध्व दिशा के ईश बृहस्पति, परम देव हैं,सात्विक, सुख अंतस के दाता, एकमेव हैं.
उस अधिपति को पुनि-पुनि प्रणाम को मन करता है,
वह सकल व्यवस्था सबके ही सुख की करता है.
तेरे विधान के न्याय-नियम हों, द्वेष शेष हों.
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उपस्थान मंत्र ______________________ॐ उद्वयन्तमसस्परि स्वः पश्यन्त उत्तरम् . देवंदेवं देवत्रा सूर्यमगन्म ज्योतिरुत्तमम् .
यजुर्वेद ३५/१४
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अति परे प्रकृति से अन्धकार से दूर अति है,
तेरे प्रकाश की तेज महत, अति अनुपम गति है.
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ॐ उदुत्यं जातवेदसं देवं वहन्ति केतवः . दृशेदृशे विश्वाय सूर्यम्. यजुर्वेद ३३/३१
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इस विश्व में ब्रह्माण्ड में जो कुछ भी, ज्ञान विवेक haiहै
उनका रचयिता, मूल कारण ब्रह्म केवल एक है.
गई है गरिमा ज्ञानियों ने , सत्य चित आनंद की,सूर्य रचनाकार की, आनंदकंद निकंद की.
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ॐ चित्रं देवानामुद्गादनीकं चक्षुर्मित्रस्यवरुणस्याग्नेः . आप्रा द्यावापृथिवी अन्तरिक्ष~म् सूर्य आत्माजगतस्तस्थुषश्च स्वाहा. यजुर्वेद ७/४२
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विश्वानि देवों में तू ही, अतिशय बली महिमा मयी.मित्र, पावक, वरुण में तू एक ओजस्वीमयी."सूर्य" आत्मावत रमा, तू जगत हरदयाकाश में,सर्व व्यापक अणु-अणु, द्यौ में धरनि आकाश में.
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ॐ तच्चक्षुर्देवहितं पुरस्ताच्छुक्रमुच्चरत् . पश्येमपश्येम शरदः शतं जीवेम शरदः शत~म् शृणुयाम शरदः
शतं प्रब्रवाम शरदः शतमदीनाः स्याम शरदः शतं
भूयश्च शरदः शतात् .
यजुर्वेद ३६/१४
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हे सर्व दृष्टा, सृष्टि के तू , आदि अंत व् मध्य में.सौ वर्ष या उससे अधिक , रहूँ ब्रह्म के ही प्रबंध में.
बस ब्रह्म को देखें सुनें और ना कभी आधीन हों,
सौ वर्ष बोलें ब्रह्म की महिमा, कभी ना दीन हों.
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गायत्री मंत्र ________________________
ॐ भूर्भुवः स्वः . तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य
धीमहि . धियो यो नः प्रचोदयात् .
यजुर्वेद, ३६/३, ऋग्वेद, ३/६२/१०
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हे सुख स्वरूपी, तुम जगत उत्पत्ति कर्ता हो महे!
प्राण स्वरूपी, सर्व रक्षक, कष्ट दुःख भंजक अहे!वर करने योग्य तू, सदबुद्धि का दाता तू ही,
सत्मार्ग पर मम बुद्धियों को, ले चलो त्राता तू ही.
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समर्पण ________________________________
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हे ईश्वर! दयानिधे सद्यःसिद्धिर भवेनः.
हे दयामय! आपकी यदि ना दया की दृष्टि हो,
कैसे हे! प्रभुवर जगत पर, फिर कृपा की वृष्टि हो.
आपकी आराधना से य़े सभी संभाव्य हैं.
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नमस्कार मन्त्र
यजुर्वेद १६/ ४१
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सौख्य सिन्धु, दीनबंधु को हमारा नमन हो,
कल्याणकारी, विश्व त्राता को हमारा नमन हो.
शिव शांति के, प्रभु मूल उद्गम , को हमारा नमन हो.
मोक्ष सुख दाता, विधाता को हमारा नमन हो.
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अथ ईश्वर स्तुति प्रार्थनोपासना मंत्रः.
अथ देव यज्ञ प्रार्थना-मंत्र.
ॐ विश्वानि देव सवितर्दुरितानि परा सुव . यद् भद्रंतन्न आ सुव. यजुर्वेद ३०/३
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जगत के उत्पत्ति कर्ता, तुम नियंता नित्य हो.
स्वस्तिमय शुभ मंगलम, तेरे कृपा सविशेष हो.
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ॐ हिरण्यगर्भः समवर्तताग्रे भूतस्य जातःपतिरेक आसीत् . स दाधार पृथिवीं द्यामुतेमां कस्मैदेवाय हविषा विधेम.
यजुर्वेद १३/४
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सृष्टि े भी पूर्व सृष्टा, तेज पुंज विराट है,
शुभ सुख स्वरूपी ब्रह्म की, अति प्रेम से भक्ति करें.
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ॐ य आत्मदा बलदा यस्य विश्व उपासते प्रशिषंयस्य देवाः . | यस्य छायाऽमृतं यस्य मृत्युः कस्मै देवायहविषा विधेम.
यजुर्वेद २५/१३
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प्राण, बल, जीवन प्रदाता, जिसका शासन श्रेय है,
शुभ सुख स्वरूपी ब्रह्म की अति प्रेम से भक्ति करें.
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ॐ य प्राणतो निमिषतो महित्वैक इद्राजा जगतोबभूव . य ईशे द्विपदश्चतुष्पदः कस्मै देवायहविषा विधेम. यजुर्वेद ३३/३
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यजुर्वेद ३३/३जगत जड़-जंगम रचयिता, सकल प्राणी वर्ग का,नियम निर्धारक व् राजा, सृष्टि और संसर्ग का.
उस प्रजापति देव से हम सत्य अनुरक्ति करें,
शुभ सुख स्वरूपी ब्रह्म की अति प्रेम से भक्ति करें.
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ॐ येन द्यौरुग्रा पृथिवी च दृ"धा येन स्वःस्तभितं येन नाकः . यो अन्तरिक्षे रजसो विमानः कस्मै देवायहविषा विधेम.
यजुर्वेद ३२/६
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भूलोक, द्यु, रवि, चन्द्र, ध्रुव, और अन्तरिक्ष बनाए हैं.
सत सुख स्वरूपी ब्रह्म की अति प्रेम से भक्ति करें.
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ॐ प्रजापते न त्वदेतान्यन्यो विश्वा जातानि परि ताबभूव . यत्कामास्ते जुहुमस्तन्नो अस्तु वयं स्याम पतयोरयीणाम् . ऋग्वेद /१०/१२१/१०
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ऋग्वेद /१०/१२१/१०
आप ही स्वामी प्रजाके, दूसरा नहीं अन्य है,
आप सर्वोपरि, कृपा से जड़ व् चेतन धन्य है.
अतुल धन ऐश्वर्य का, स्वामी हमें ईश्वर करें.
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ॐ स नो बन्धुर्जनिता स विधाता धामानि वेदभुवनानि विश्वा . यत्र देवा अमृतमानशानास्तृतीयेधामन्नध्यैरयन्त .
यजुर्वेद ३२/१०
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तू हमारा जन्म दाता, मातु- पितु बन्धु सभी.
व्याप्त है ब्रह्माण्ड अखिलं, ब्रह्म की ही महानता.
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ॐ अग्ने नय सुपथा राये अस्मान् विश्वानि देव वयुनानिविद्वान् . युयोध्यस्मज्जुहुराणमेनो भूयिष्ठां ते नमौक्तिंविधेम .
यजुर्वेद ४०/१६
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त्म-भू, ज्योति स्वरूपी, सुपथ पर ले जाइए,
प्रेम भक्ति मय 'नमन' गुण गान तेरा गा सकें.
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अथ स्वस्तिवाचनम.
ॐ अग्नि मीडे पुरोहितं ---------------------------------------रत्नधातमम.
ऋग्वेद १/१/१
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