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"गर्मी / दीनदयाल शर्मा" के अवतरणों में अंतर

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02:01, 26 मार्च 2011 के समय का अवतरण

तपता सूरज लू चलती है
हम सब की काया जलती है।

गर्मी आग का है तंदूर
इससे कैसे रहेंगे दूर।

मन करता हम कुल्फ़ी खाएँ
कूलर के आगे सो जाएँ।

खेलने को हम हैं मज़बूर
खेलेंगे हम सभी ज़रूर।

पेड़ों की छाया में चलकर
झूला झूल के आएँगे।

फिर चाहे कितनी हो गर्मी
इससे ना घबराएँगे।।