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"बुलावा / परवीन शाकिर" के अवतरणों में अंतर

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|संग्रह=खुली आँखों में सपना / परवीन शाकिर;सदबर्ग / परवीन शाकिर  
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12:07, 16 जून 2010 के समय का अवतरण

मैंने सारी उम्र
किसी मंदिर में क़दम नहीं रक्खा
लेकिन जब से
तेरी दुआ में
मेरा नाम शरीक हुआ है
तेरे होंठो की जुम्बिश पर
मेरे अन्दर की दासी के उजले तन में
घंटियाँ बजती रहती हैं