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मानसून का पहला पानी / वीरेन डंगवाल
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16:55, 21 जून 2010
याद वही सब करता है
जो याद नहीं अब, फिर भी रह-रह बजता है
ज्यों काँसे की गागर पर
बज़ती
बजती
हों
बूंदें
बूँदें
।
वह गागर, यों तो फूट चुकी है अब कब की,
पर रक्खी है फिर भी सहेजकर पेटी में ।
</poem>
अनिल जनविजय
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