भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"मन का तोता / अवनीश सिंह चौहान" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 4: | पंक्ति 4: | ||
|संग्रह= | |संग्रह= | ||
}} | }} | ||
− | {{ | + | {{KKCatNavgeet}} |
<Poem> | <Poem> | ||
मन का तोता बोला करता | मन का तोता बोला करता |
21:14, 30 जून 2010 का अवतरण
मन का तोता बोला करता
रोज़ नये संवाद
महल-मलीदा-पदवी चाहे
लाखों-लाख पगार
काम एक ना वैसा करता
सपने आँख हज़ार
इच्छाओं की सूची भरता
देता सिर पर लाद
अपने आम बाग के मीठे
कुतर-कुतर कर फैंके
किन्तु पड़ोसी का खट्टा भी
उसको ज्यादा महके
समझाने पर करता-रहता
अड़ा-खड़ा प्रतिवाद
कि विज्ञापन की भाषा बोले
‘यह दिल माँगे मोर’
देख-देख बौराए तोता
देता खींस निपोर
बात न मानो, करने लगता
घर में रोज़ फ़साद