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"गौरैया / अवनीश सिंह चौहान" के अवतरणों में अंतर
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| − | + | नहीं दीखती अब गौरैया  | |
| + | गाँव-गली-घर या शहरों में  | ||
छत-मुँडेर पर, गाँव-खेत में  | छत-मुँडेर पर, गाँव-खेत में  | ||
चिड़ीमार ने जाल बिछाए  | चिड़ीमार ने जाल बिछाए  | ||
| − | पकड़-पकड़ कर पिंजड़ों में धर  | + | पकड़-पकड़ कर, पिंजड़ों में धर  | 
चिड़ियाघर में उसको लाए  | चिड़ियाघर में उसको लाए  | ||
| − | + | सुधिया कभी दिखे ना कोई  | |
| − | आते-जाते बहरों में  | + | आते-जाते इन बहरों में  | 
| − | + | सहमी-सी बैठी गौरैया  | |
टूटे पर अपने सहलाए  | टूटे पर अपने सहलाए  | ||
दम घुटता है साँसें दुखतीं  | दम घुटता है साँसें दुखतीं  | ||
| − | + | उड़ जाने की आस लगाए   | |
| − | गोते खाती   | + | गोते खाती है छिन-पलछिन  | 
| − | अंदर-बाहर लहरों में  | + | अंदर-बाहर की लहरों में  | 
दाना भी है, पानी भी है  | दाना भी है, पानी भी है  | ||
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बात सभी ने जानी भी है  | बात सभी ने जानी भी है  | ||
| − | + | सभी यहाँ चुप राजा-रानी  | |
| − | रखकर उसको पहरों में  | + | रखकर उसको पहरों में!  | 
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01:19, 12 अगस्त 2011 का अवतरण
नहीं दीखती अब गौरैया
गाँव-गली-घर या शहरों में
छत-मुँडेर पर, गाँव-खेत में
चिड़ीमार ने जाल बिछाए
पकड़-पकड़ कर, पिंजड़ों में धर
चिड़ियाघर में उसको लाए
सुधिया कभी दिखे ना कोई
आते-जाते इन बहरों में
सहमी-सी बैठी गौरैया
टूटे पर अपने सहलाए
दम घुटता है साँसें दुखतीं
उड़ जाने की आस लगाए 
गोते खाती है छिन-पलछिन
अंदर-बाहर की लहरों में
दाना भी है, पानी भी है
मीठे बोल, रवानी भी है
पराधीनता में दुख-ही-दुख
बात सभी ने जानी भी है
सभी यहाँ चुप राजा-रानी
रखकर उसको पहरों में!
	
	