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"मुझे देखने है / नवनीत पाण्डे" के अवतरणों में अंतर

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<poem>मुझे देखने है
 
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सारे अदेखे दृष्य
 
सारे अदेखे दृष्य

04:49, 28 सितम्बर 2011 के समय का अवतरण

मुझे देखने है
सारे अदेखे दृष्य
मुझे जानने है
सारे अज्ञाने ज्ञान
मुझे समेटने है
सारे बिखराव
बस इसी एक आस में
बैठा हूं कब से
इस नंगधड़ंग तार पर
इस कबूतर के भीतर
कबूतर के भीतर का कबूतर
इस शोध में मेरे साथ है
मेरे भीतर बैठा है एक बंदर
मुझे याद है।