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तसल्लियों के बाम
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क्या सुखा पाएँगे
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घाव पर पड़े घावों
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और असंख्य झीलनुमा घावों को
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घनेरे घावों पर
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पपड़ाए पीप को
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क्या भेद पाएंगे
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दिवास्वप्न के ओषध,
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मार पाएंगे
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उन पर पलते
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आदमखोर विषाणुओं को
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घावों के घर में
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हमारे संग जी रहे हैं
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अनगिन घाव अपनी पूरी उम्र,
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वे हम पर थाथाते हैं
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उठाते टींसों के ज्वार पर
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मुस्कराते हैं
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कनाखियाकर
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हहराकर हंसते हैं
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दहकते दर्द पर
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पर, ये घाव हैं कि
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जहीन भरेंगे कभी भी
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पुष्ट-दर-पुष्ट
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ठहरे रहेंगे वहीं
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जहां थे वे कभी.

13:39, 3 अगस्त 2010 के समय का अवतरण


घाव

घाव पड़े हैं गहरे-गहरे
जिस्म के पोर-पोर
मन के ओर-छोर

सपनों के मलहम
तसल्लियों के बाम
क्या सुखा पाएँगे
घाव पर पड़े घावों
और असंख्य झीलनुमा घावों को

घनेरे घावों पर
पपड़ाए पीप को
क्या भेद पाएंगे
दिवास्वप्न के ओषध,
मार पाएंगे
उन पर पलते
आदमखोर विषाणुओं को

घावों के घर में
हमारे संग जी रहे हैं
अनगिन घाव अपनी पूरी उम्र,
वे हम पर थाथाते हैं
उठाते टींसों के ज्वार पर
मुस्कराते हैं
कनाखियाकर
हहराकर हंसते हैं
दहकते दर्द पर

पर, ये घाव हैं कि
जहीन भरेंगे कभी भी
पुष्ट-दर-पुष्ट
ठहरे रहेंगे वहीं
जहां थे वे कभी.