भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"सभ्यता / ओम पुरोहित ‘कागद’" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Neeraj Daiya (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: <poem>सभ्य पद चापों से जरा हटकर सड़क के किनारे किसी गंदे नाले में अपन…) |
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
||
| पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
| − | < | + | {{KKGlobal}} |
| + | {{KKRachna | ||
| + | |रचनाकार=ओम पुरोहित कागद | ||
| + | |संग्रह=धूप क्यों छेड़ती है / ओम पुरोहित कागद | ||
| + | }} | ||
| + | {{KKCatKavita}} | ||
| + | <Poem> | ||
| + | सभ्य पद चापों से | ||
जरा हटकर | जरा हटकर | ||
सड़क के किनारे | सड़क के किनारे | ||
02:05, 20 जुलाई 2010 का अवतरण
सभ्य पद चापों से
जरा हटकर
सड़क के किनारे
किसी गंदे नाले में
अपना ही चेहरा देख कर,
कितने असभ्य हो जाते हैं हम।
अप्ने ही चेहरे पर
पेशाब कर
अपना ही अक्स मिटा डालते हैं।
अहंकार की डकार ले
उलटे पांव
जेब में हाथ डाल
पुन:
सभ्य पद चापों में,
अपनी पदध्वनि
मिला कर हंसते हैं
अपने हम सफ़र की_
आंख में लोग कीचड़ को देख कर।
.... और कितनी शान से
मिलाते हैं हम
‘वे हाथ ’
मूंछों पर ताव देकर
अपने राह चलते अजीज से।
