भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"वर्षा ॠतु / शास्त्री नित्यगोपाल कटारे" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
  जब ग्रीष्म ॠतु गई और वर्षा ॠतु आई
+
{{KKGlobal}}
तब हम बिल्कुल फालतू थे
+
{{KKRachna
इसलिये एक कविता बनाई
+
|रचनाकार= शास्त्री नित्यगोपाल कटारे
और एक बड़े कार्यक्रम में  
+
|संग्रह=
तबियत से गाकर सुनाई
+
}}
बदरा घिर आये रुत है भीगी॑ भीगी
+
{{KKCatKavita‎}}
नाचे मन मोरा मगन ताका धीगी धीगी
+
<Poem>
बीच में बैठे एक श्रोता से नहीं रहा जा रहा था
+
जब ग्रीष्म ॠतु गई और वर्षा ॠतु आई
उससे वर्षा ॠतु का पारम्परिक वर्णन नहीं सहा जा रहा था
+
तब हम बिल्कुल फालतू थे
फिर भी हमने की बेहयाई
+
इसलिए एक कविता बनाई
अपनी कविता और भी आगे बढ़ाई
+
और एक बड़े कार्यक्रम में  
सावन का महीना पवन करे शोर
+
तबियत से गाकर सुनाई
जियरा रे ऐंसे झूमे जैसे वन में नाचे मोर
+
 
अब श्रोता हो गया था बिल्कुल बोर
+
बदरा घिर आए रुत है भीगी॑ भीगी
वह चिल्लाया अबे चुप चोर!
+
नाचे मन मोरा मगन ताका धीगी धीगी
एक घंटे से सुनी सुनाई कविता वाँच रहा है
+
बीच में बैठे एक श्रोता से नहीं रहा जा रहा था
हम मरे जा रहे हैं और तेरा जियरा नाच रहा है
+
उससे वर्षा ॠतु का पारम्परिक वर्णन नहीं सहा जा रहा था
बिना सोचे समझे क्या ऊटपटांग लिखता है
+
फिर भी हमने की बेहयाई
इतना वाहियात मौसम तुझे सुहाना दिखता है
+
अपनी कविता और भी आगे बढ़ाई
यदि तुझे सचमुच आता है वरसात में मजा
+
सावन का महीना पवन करे शोर
तो जरा हाउसिंग बोर्ड में अजा
+
जियरा रे ऐसे झूमे जैसे वन में नाचे मोर
घुसते ही तथाकथित ऐतिहासिक सड़क में फस जायेगा
+
अब श्रोता हो गया था बिल्कुल बोर
और जरा सा बहका तो  
+
 
स्कूटर समेत नाली में धस जायेगा
+
वह चिल्लाया अबे चुप चोर!
फिर तेरा मन नाच नहीं कूद कूद जायेगा
+
एक घंटे से सुनी सुनाई कविता बाँच रहा है
दूरदर्शन पर वरसात की भविष्यवाणी से ही
+
हम मरे जा रहे हैं और तेरा जियरा नाच रहा है
सारी कविता भूल जायेगा
+
बिना सोचे समझे क्या ऊटपटांग लिखता है
खिड़की से पवन के झोंके की जगह
+
इतना वाहियात मौसम तुझे सुहाना दिखता है
सांप की फुफकार सुनोगे तो तबियत हिल जायेगी
+
यदि तुझे सचमुच आता है बरसात में मजा
और कहीं चपेट में आ गये तो  
+
तो जरा हाउसिंग बोर्ड में अजा
कविता के साथ साथ कवि से भी मुक्ति मिल जायेगी
+
घुसते ही तथाकथित ऐतिहासिक सड़क में फँस जाएगा
यदि लिखना है तो लिखो हालात सच्चे
+
और जरा सा बहका तो  
तुम मोर नाचने की बात करते हो
+
स्कूटर समेत नाली में धँस जायेगा
जबकि नाच रहे हैं सुअर के बच्चे
+
 
टूटे सेप्टिक टेंक की गन्दगी
+
फिर तेरा मन नाच नहीं कूद-कूद जायेगा
जो वाकी समय सड़क के किनारे वहती थी
+
दूरदर्शन पर वरसात की भविष्यवाणी से ही
अब वरसात की कृपा से  
+
सारी कविता भूल जायेगा
दरवाजे तक आ जाती है
+
खिड़की से पवन के झोंके की जगह
और हरियाली के साथ साथ चारों ओर
+
साँप की फुफकार सुनोगे तो तबियत हिल जायेगी
गन्दगी ही गन्दगी छा जाती है
+
और कहीं चपेट में आ गये तो  
हमें पता ही नहीं  
+
कविता के साथ साथ कवि से भी मुक्ति मिल जायेगी
कैसी होती है मिट्टी की गन्ध ?
+
 
यहाँ तो व्याप्त हो जाती है
+
यदि लिखना है तो लिखो हालात सच्चे
सिनेटरी लाईन की दुर्गन्ध ही दुर्गन्ध
+
तुम मोर नाचने की बात करते हो
माना कि वरसात की बूँदें  
+
जबकि नाच रहे हैं सुअर के बच्चे
प्रेमियों को अच्छी लगती हैं
+
टूटे सेप्टिक टेंक की गन्दगी
बशर्ते वे घंटे दो घंटे गिरें
+
जो बाकी समय सड़क के किनारे वहती थी
बादलों से भी शिकायत नहीं  
+
अब बरसात की कृपा से  
वे घिरें तो घिरें उनका स्वागत है
+
दरवाजे तक आ जाती है
पर आपको नहीं मालूम श्रीमान !
+
और हरियाली के साथ साथ चारों ओर
यह हाउसिंग बोर्ड का छत है
+
गन्दगी ही गन्दगी छा जाती है
बादल तो पन्द्रह मिनिट बरस कर चला जाता है
+
हमें पता ही नहीं  
परन्तु यह हरामजादा छत  
+
कैसी होती है मिट्टी की गन्ध ?
उसे पन्द्रह घंटे तक टपकाता है
+
यहाँ तो व्याप्त हो जाती है
अँधेरी रात स्ट्रीट लाईट बन्द
+
सिनेटरी लाईन की दुर्गन्ध ही दुर्गन्ध
घनघोर वारिश में और भी कई दन्द फन्द
+
 
इस सींड़े मौसम में न खा पाते हैं  
+
माना कि वरसात की बूँदें  
न सो पाते हैं
+
प्रेमियों को अच्छी लगती हैं
सच पूछिये तो वरसात के नाम पर
+
बशर्ते वे घंटे दो घंटे गिरें
हमारे कटारे खड़े हो जाते हैँ
+
बादलों से भी शिकायत नहीं  
 +
वे घिरें तो घिरें उनका स्वागत है
 +
पर आपको नहीं मालूम श्रीमान !
 +
यह हाउसिंग बोर्ड का छत है
 +
बादल तो पन्द्रह मिनिट बरस कर चला जाता है
 +
परन्तु यह हरामजादा छत  
 +
उसे पन्द्रह घंटे तक टपकाता है
 +
 
 +
अँधेरी रात स्ट्रीट लाईट बन्द
 +
घनघोर बारिश में और भी कई दन्द-फन्द
 +
इस सींड़े मौसम में न खा पाते हैं  
 +
न सो पाते हैं
 +
सच पूछिये तो वरसात के नाम पर
 +
हमारे कटारे खड़े हो जाते हैँ
 +
</poem>

00:26, 20 जुलाई 2010 का अवतरण

 
जब ग्रीष्म ॠतु गई और वर्षा ॠतु आई
तब हम बिल्कुल फालतू थे
इसलिए एक कविता बनाई
और एक बड़े कार्यक्रम में
तबियत से गाकर सुनाई

बदरा घिर आए रुत है भीगी॑ भीगी
नाचे मन मोरा मगन ताका धीगी धीगी
बीच में बैठे एक श्रोता से नहीं रहा जा रहा था
उससे वर्षा ॠतु का पारम्परिक वर्णन नहीं सहा जा रहा था
फिर भी हमने की बेहयाई
अपनी कविता और भी आगे बढ़ाई
सावन का महीना पवन करे शोर
जियरा रे ऐसे झूमे जैसे वन में नाचे मोर
अब श्रोता हो गया था बिल्कुल बोर

वह चिल्लाया अबे चुप चोर!
एक घंटे से सुनी सुनाई कविता बाँच रहा है
हम मरे जा रहे हैं और तेरा जियरा नाच रहा है
बिना सोचे समझे क्या ऊटपटांग लिखता है
इतना वाहियात मौसम तुझे सुहाना दिखता है
यदि तुझे सचमुच आता है बरसात में मजा
तो जरा हाउसिंग बोर्ड में अजा
घुसते ही तथाकथित ऐतिहासिक सड़क में फँस जाएगा
और जरा सा बहका तो
स्कूटर समेत नाली में धँस जायेगा

फिर तेरा मन नाच नहीं कूद-कूद जायेगा
दूरदर्शन पर वरसात की भविष्यवाणी से ही
सारी कविता भूल जायेगा
खिड़की से पवन के झोंके की जगह
साँप की फुफकार सुनोगे तो तबियत हिल जायेगी
और कहीं चपेट में आ गये तो
कविता के साथ साथ कवि से भी मुक्ति मिल जायेगी

यदि लिखना है तो लिखो हालात सच्चे
तुम मोर नाचने की बात करते हो
जबकि नाच रहे हैं सुअर के बच्चे
टूटे सेप्टिक टेंक की गन्दगी
जो बाकी समय सड़क के किनारे वहती थी
अब बरसात की कृपा से
दरवाजे तक आ जाती है
और हरियाली के साथ साथ चारों ओर
गन्दगी ही गन्दगी छा जाती है
हमें पता ही नहीं
कैसी होती है मिट्टी की गन्ध ?
यहाँ तो व्याप्त हो जाती है
सिनेटरी लाईन की दुर्गन्ध ही दुर्गन्ध

माना कि वरसात की बूँदें
प्रेमियों को अच्छी लगती हैं
बशर्ते वे घंटे दो घंटे गिरें
बादलों से भी शिकायत नहीं
वे घिरें तो घिरें उनका स्वागत है
पर आपको नहीं मालूम श्रीमान !
यह हाउसिंग बोर्ड का छत है
बादल तो पन्द्रह मिनिट बरस कर चला जाता है
परन्तु यह हरामजादा छत
उसे पन्द्रह घंटे तक टपकाता है

अँधेरी रात स्ट्रीट लाईट बन्द
घनघोर बारिश में और भी कई दन्द-फन्द
इस सींड़े मौसम में न खा पाते हैं
न सो पाते हैं
सच पूछिये तो वरसात के नाम पर
हमारे कटारे खड़े हो जाते हैँ