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"कविता-6 / रवीन्द्रनाथ ठाकुर" के अवतरणों में अंतर
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पर वह गुज़र जाती है | पर वह गुज़र जाती है | ||
और हर लहर पर बारंबार टकराती | और हर लहर पर बारंबार टकराती |
20:40, 21 जुलाई 2010 के समय का अवतरण
रास्ते में जब हमारी आँखें मिलती हैं
मैं सोचता हूँ मुझे उसे कुछ कहना था
पर वह गुज़र जाती है
और हर लहर पर बारंबार टकराती
एक नौका की तरह
मुझे कंपाती रहती है-
वह बात जो
मुझे उससे कहनी थी
यह पतझड़ में बादलों की अंतहीन तलाश
की तरह है या संध्या में खिले फूलों-से
सूर्यास्त में अपनी खुशबू खोना है
जुगनू की तरह मेरे हृदय में
भुकभुकाती रहती है
निराशा के झुटपुटे में अपना अर्थ तलाशती-
वह बात जो मुझे उसे बतानी थी ।
अंग्रेज़ी से अनुवाद - कुमार मुकुल