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"तुम्हारी भूल / ओम पुरोहित ‘कागद’" के अवतरणों में अंतर
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12:16, 31 अगस्त 2010 का अवतरण
तुम्हारा सोच है
कि, अपने इर्द-गिर्द
अलाव जला कर
तुम सुरक्षित हो
यही तुम्हारी भूल है
क्योंकि तुम नहीं जानते ;
हवाओं को कभी
दायरों में और न बाहर
क़ैद किया जा सकता है।
हवाएं
अलाव को लांघ कर
दुगुने वेग
और अतिरिक्त ताप के साथ
तुम तक पहुंचने की
औकात रखती है
तुम
हर बार
भूलते हो
और
गुब्बारों में
हवाओं को क़ैद करने का
भ्रम पालते हो,
जब कि
यह सच है
गुब्बारों की हरगिज औकात नहीं
कि वे
हवाओं को कैद कर सकें
गुब्बारे
जब भी फूटेंगे
हवाएं
तुम्हारे द्वारा शोषित
अपनी जगह घेरने
धमाकों के साथ
तुम्हारी ओर
बढ़ेगी
हां,
तब तुम
अपनी जड़ें
मजबूत रखना।