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"मौन ही मुखर है / विष्णु प्रभाकर" के अवतरणों में अंतर
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+ | सत्ता की, शैतान की, धर्म की, धर्मान्धता की | ||
+ | और पहनकर उन्हें मर गया आदमी | ||
+ | सचमुच | ||
+ | जीव उठी वर्दियाँ और कुर्सियाँ | ||
+ | जो खेलती हैं नाटक | ||
+ | सद्भावना का, समानता का | ||
+ | निकालकर रैलियाँ लाशों की, | ||
+ | मुबारक हो, मुबारक हो, | ||
+ | नई रैलियों का यह नया युग | ||
+ | तुमको, हमको और उन भेड़ियों को भी | ||
+ | सबको मुबारक हो, | ||
+ | धम-धमाधम, धम-धमाधम, धम-धमाधम | ||
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11:01, 16 अगस्त 2010 का अवतरण
धम-धमाधम, धम-धमाधम, धम-धमाधम
लो आ गया एक और नया वर्ष
ढोल बजाता, रक्त बहाता
हिंसक भेड़ियों के साथ
ये वे ही भेड़िए हैं
डर कर जिनसे
की थी गुहार आदिमानव ने
अपने प्रभु से-
'दूर रखो हमें हिंसक भेड़ियों से'
हाँ, ये वे ही भेड़िए हैं
जो चबा रहे हैं इन्सानियत इन्सान की
और पहना रहे हैं पोशाकें उन्हें
सत्ता की, शैतान की, धर्म की, धर्मान्धता की
और पहनकर उन्हें मर गया आदमी
सचमुच
जीव उठी वर्दियाँ और कुर्सियाँ
जो खेलती हैं नाटक
सद्भावना का, समानता का
निकालकर रैलियाँ लाशों की,
मुबारक हो, मुबारक हो,
नई रैलियों का यह नया युग
तुमको, हमको और उन भेड़ियों को भी
सबको मुबारक हो,
धम-धमाधम, धम-धमाधम, धम-धमाधम