"वर्षा के मेघ कटे / गोपीकृष्ण 'गोपेश'" के अवतरणों में अंतर
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
Pratishtha (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 4: | पंक्ति 4: | ||
|संग्रह= | |संग्रह= | ||
}} | }} | ||
+ | {{KKAnthologyVarsha}} | ||
{{KKCatNavgeet}} | {{KKCatNavgeet}} | ||
<poem> | <poem> |
18:34, 31 मार्च 2011 के समय का अवतरण
वर्षा के मेघ कटे-
रहे-रहे आसमान बहुत साफ़ हो गया है,
वर्षा के मेघ कटे !
पेड़ों की छाँव ज़रा और हरी हो गई है,
बाग़ में बग़ीचों में और तरी हो गई है-
राहों पर मेंढक अब सदा नहीं मिलते हैं
पौधों की शाखों पर काँटे तक खिलते हैं
चन्दा मुस्काता है;
मधुर गीत गाता है-
घटे-घटे,
अब तो दिनमान घटे !
वर्षा के मेघ घटे !!
ताल का, तलैया का जल जैसे धुल गया है;
लहर-लहर लेती है, एक राज खुल गया है-
डालों पर डोल-डोल गौरैया गाती है
ऐसे में अचानक ही धरती भर आती है
कोई क्यों सजता है
अन्तर ज्यों बजता है
हटे-हटे
अब तो दुःख-दाह हटे !
वर्षा के मेघ कटे !!
साँस-साँस कहती है- तपन ज़र्द हो गई है-
प्राण सघन हो उठे हैं, हवा सर्द हो गई है-
अपने-बेगाने
अब बहुत याद आते हैं
परदेसी-पाहुन क्यों नहीं लौट आते हैं ?
भूलें ज्यों भूल हुई
कलियाँ ज्यों फूल हुईं
सपनों की सूरत-सी
मन्दिर की मूरत-सी
रटे-रटे
कोई दिन-रैन रटे ।
वर्षा के मेघ कटे ।