}}
{{KKPageNavigation
|पीछे=अयोध्या काण्ड अयोध्याकाण्ड / भाग ७ / रामचरितमानस / तुलसीदास|आगे=किष्किन्धा काण्ड किष्किन्धाकाण्ड / रामचरितमानस / तुलसीदास
|सारणी=रामचरितमानस / तुलसीदास
}}
<center><font size=51>अरण्य काण्डश्रीगणेशायनमः</font></center><br><brcenter> श्री गणेशाय नमः<brfont size=1>श्री जानकीवल्लभो श्रीजानकीवल्लभो विजयते</font></center><br>श्री रामचरितमानस<br>———-<center><font size=6>श्रीरामचरितमानस</font></center><br><br><center><font size=4>तृतीय सोपान</font></center><br>(<center><font size=5>अरण्यकाण्ड)</font></center><br><br>श्लोक<span class="shloka"><br>श्लोक
मूलं धर्मतरोर्विवेकजलधेः पूर्णेन्दुमानन्ददं<br>
वैराग्याम्बुजभास्करं ह्यघघनध्वान्तापहं तापहम्।<br>
पावहिं मोह बिमूढ़ जे हरि बिमुख न धर्म रति।।<br><br>
चौ0-पुर नर भरत प्रीति मैं गाई। मति अनुरूप अनूप सुहाई।।<br>
अब प्रभु चरित सुनहु अति पावन। करत जे बन सुर नर मुनि भावन।।<br>
एक बार चुनि कुसुम सुहाए। निज कर भूषन राम बनाए।।<br>