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− | + | रूहों ने शहीदों की फिर हमको पुकारा है | |
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− | + | इन फिरकापरस्तों की बातों में न आ जाना | |
− | + | मस्जिद भी हमारी है , मंदिर भी हमारा है | |
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− | + | मजहब हो कोई लेकिन तू भाई हमारा है | |
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02:28, 6 सितम्बर 2010 का अवतरण
सप्ताह की कविता | शीर्षक : इन फ़िरकापरस्तों की बातों में न आ जाना रचनाकार: आदिल रशीद |
रूहों ने शहीदों की फिर हमको पुकारा है सरहद की सुरक्षा का अब फ़र्ज़ तुम्हारा है हमला हो जो दुश्मन का हम जायेगे सरहद पर जाँ देंगे वतन पर ये अरमान हमारा है इन फिरकापरस्तों की बातों में न आ जाना मस्जिद भी हमारी है , मंदिर भी हमारा है ये कह के हुमायूँ को भिजवाई थी इक राखी मजहब हो कोई लेकिन तू भाई हमारा है अब चाँद भले काफ़िर कह दें ये जहाँ वाले जिसे कहते हैं मानवता वो धर्म हमारा है रूहों ने शहीदों की फिर हमको पुकारा है सरहद की सुरक्षा का अब फ़र्ज़ तुम्हारा है