भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"साँचा:KKPoemOfTheWeek" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
पंक्ति 6: पंक्ति 6:
 
<tr><td rowspan=2>[[चित्र:Lotus-48x48.png|middle]]</td>
 
<tr><td rowspan=2>[[चित्र:Lotus-48x48.png|middle]]</td>
 
<td rowspan=2>&nbsp;<font size=4>सप्ताह की कविता</font></td>
 
<td rowspan=2>&nbsp;<font size=4>सप्ताह की कविता</font></td>
<td>&nbsp;&nbsp;'''शीर्षक : भारत का फ़िलीस्तीन<br>
+
<td>&nbsp;&nbsp;'''शीर्षक : इन फ़िरकापरस्तों की बातों में न आ जाना<br>
&nbsp;&nbsp;'''रचनाकार:''' [[अंजली]]</td>
+
&nbsp;&nbsp;'''रचनाकार:''' [[आदिल रशीद]]</td>
 
</tr>
 
</tr>
 
</table>
 
</table>
 
<pre style="overflow:auto;height:21em;background:transparent; border:none; font-size:14px">
 
<pre style="overflow:auto;height:21em;background:transparent; border:none; font-size:14px">
यह जगह क्या युद्ध स्थल है
+
रूहों ने शहीदों की फिर हमको पुकारा है
या वध स्थल है
+
सरहद की सुरक्षा का अब फ़र्ज़ तुम्हारा है
  
सिर पर निशाना साधे सेना के इतने जवान
+
हमला हो जो दुश्मन का हम जायेगे सरहद पर
इस स्थल पर क्यों हैं
+
जाँ  देंगे वतन पर ये अरमान हमारा है
क्या यह हमारा ही देश है
+
या दुश्मन देश पर कब्जा है
+
  
खून से लथपथ बच्चे महिलाएँ युवा बूढ़े
+
इन फिरकापरस्तों की बातों में न आ जाना
सब उठाये हुए हैं पत्थर
+
मस्जिद भी हमारी है , मंदिर भी हमारा है
  
इतना गुस्सा
+
ये कह के हुमायूँ को भिजवाई थी इक राखी
मौत के खिलाफ़ इतनी बदसलूकी
+
मजहब हो कोई लेकिन तू भाई हमारा है
इस क़दर बेफिक्री
+
क्या यह फिलीस्तीन है
+
या लौट आया है 1942 का मंज़र
+
  
समय समाज के साथ पकता है
+
अब चाँद भले काफ़िर कह दें ये जहाँ वाले
और समाज बड़ा होता है
+
जिसे कहते हैं मानवता वो धर्म हमारा है
इंसानी जज़्बों के साथ
+
उस मृत बच्चे की आँख की चमक देखो
+
धरती की शक्ल बदल रही है
+
  
वस्तुनिष्ठ प्रश्नोत्तर का समय बीत चुका है
+
रूहों ने शहीदों की फिर हमको पुकारा है
और तुम्हारे निपटा देने के तरीके से
+
सरहद की सुरक्षा का अब फ़र्ज़ तुम्हारा है </pre>
बन रहे हैं दलदल
+
बन रही हैं गुप्त कब्रें
+
और श्मशान घाट
+
 
+
आग और मिट्टी के इस खेल में
+
क्या दफ़्न हो पायेगा एक पूरा देश
+
उस देश का पूरा जन
+
या गुप्त फाइलों में छुपा ली जाएगी
+
जन के देश होने की हक़ीक़त
+
देश के आज़ाद होने की ललक
+
व धरती के लहूलुहान होने की सूरत
+
 
+
मैं किसी मक्के के खेत
+
या ताल की मछलियों के बारे में नहीं
+
कश्मीर की बात कर रहा हूँ
+
जी हाँ, आज़ादी के आइने में देखते हुए
+
इस समय कश्मीर की बात कर रहा हूँ </pre>
+
 
<!----BOX CONTENT ENDS------>
 
<!----BOX CONTENT ENDS------>
 
</div><div class='boxbottom_lk'><div></div></div></div>
 
</div><div class='boxbottom_lk'><div></div></div></div>

02:28, 6 सितम्बर 2010 का अवतरण

Lotus-48x48.png  सप्ताह की कविता   शीर्षक : इन फ़िरकापरस्तों की बातों में न आ जाना
  रचनाकार: आदिल रशीद
रूहों ने शहीदों की फिर हमको पुकारा है
सरहद की सुरक्षा का अब फ़र्ज़ तुम्हारा है

हमला हो जो दुश्मन का हम जायेगे सरहद पर
जाँ  देंगे वतन पर ये अरमान हमारा है

इन फिरकापरस्तों की बातों में न आ जाना
मस्जिद भी हमारी है , मंदिर भी हमारा है

ये कह के हुमायूँ को भिजवाई थी इक राखी
मजहब हो कोई लेकिन तू भाई हमारा है

अब चाँद भले काफ़िर कह दें  ये जहाँ वाले
जिसे कहते हैं मानवता वो धर्म हमारा है

रूहों ने शहीदों की फिर हमको पुकारा है
सरहद की सुरक्षा का अब फ़र्ज़ तुम्हारा है