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"फूले वनांत के कांचनार / अमोघ" के अवतरणों में अंतर
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फूले वनांत के कांचनार । | फूले वनांत के कांचनार । | ||
मिट्टी की गोराई निखरी, | मिट्टी की गोराई निखरी, | ||
रग-रग में अरुणाई बिखरी, | रग-रग में अरुणाई बिखरी, | ||
− | कामना-कली सिहरी-सिहरी पाकर ओठों पर मधुर | + | कामना-कली सिहरी-सिहरी पाकर ओठों पर मधुर भार । |
फूले वनांत के कांचनार ! | फूले वनांत के कांचनार ! | ||
घासों पर अब छाई लाली, | घासों पर अब छाई लाली, | ||
चरवाहों के स्वर में गाली, | चरवाहों के स्वर में गाली, | ||
− | सकुची पगडंडी फैल चली लेकर अपना पूरा | + | सकुची पगडंडी फैल चली लेकर अपना पूरा प्रसार । |
फूले वनांत के कांचनार ! | फूले वनांत के कांचनार ! | ||
15:35, 2 सितम्बर 2010 के समय का अवतरण
फूले वनांत के कांचनार !
खेतों के चंचल अंचल से आती रह-रह सुरभित बयार ।
फूले वनांत के कांचनार ।
मिट्टी की गोराई निखरी,
रग-रग में अरुणाई बिखरी,
कामना-कली सिहरी-सिहरी पाकर ओठों पर मधुर भार ।
फूले वनांत के कांचनार !
घासों पर अब छाई लाली,
चरवाहों के स्वर में गाली,
सकुची पगडंडी फैल चली लेकर अपना पूरा प्रसार ।
फूले वनांत के कांचनार !
शाखों से फूटे लाल-लाल,
सेमल के मन के मधु-ज्वाल,
उमड़े पलास के मुक्त हास, गुमसुम है उत्सुक कर्णिकार ।
फूले वनांत के कांचनार !
मंजरियों का मादक रस पी,
बागों में फिर कोयल कूकी,
उत्सव के गीतों से अहरह मुखरित ग्रामों के द्वार-द्वार ।
फूले वनांत के कांचनार !
रचनाकाल : मार्च 1962