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"कुछ और कविताएं / मुकेश मानस" के अवतरणों में अंतर

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'''बोध'''  
 
'''बोध'''  

18:06, 7 सितम्बर 2010 के समय का अवतरण


बोध
ठहरता नहीं
कुछ भी, कभी कहीं
दिखता है जहाँ अंत
होती है शुरूआत वहीं
          2008

सुख-दुख
क्षण भर के लिये आता है सुख
और छोड़ जाता है दुख
अंतहीन समय के लिये
            2005

रूपक
जीवन को आदमी जीवन भर
एक रूपक की तरह जीता है
और मौत रूपक तोड़ देती है
एक क्षण में
    2004

याद
किसी की याद
आती रही रात भर
और सुबह उठते ही देखा
अपना चेहरा दर्पण में
           2004

नींद
रात भर आती नहीं नींद
रात गुज़र जाती है
नींद की प्रतीक्षा में
        2005

जीवन
इस निविड़ गहन अंधकार में
जुगनू सा जो चमकता है
जीवन है
अपने समूचे यथार्थ के साथ
               2000

पहचान
जब-जब ठोकर खाता हूँ
खुद को पहचानने लगता हूँ
थोड़ा और साफ़
      2004

उदास दिन
कितने उदास दिन हैं
जिन्हें जी रहा हूँ इन दिनों
लगता है जैसे वक्त को
पी रहा हूँ इन दिनों
          2005