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− | + | ज़िन्दगी जब भी तेरी बज़्म में लाती है हमें | |
− | + | ये ज़मीं चाँद से बेहतर नज़र आती है हमें | |
− | + | सुर्ख़ फूलों से महक उठती हैं दिल की राहें | |
− | + | दिन ढले यूँ तेरी आवाज़ बुलाती है हमें | |
− | + | याद तेरी कभी दस्तक कभी सरगोशी से | |
− | + | रात के पिछले पहर रोज़ जगाती है हमें | |
− | + | हर मुलाक़ात का अंजाम जुदाई क्यूँ है | |
− | + | अब तो हर वक़्त यही बात सताती है हमें | |
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00:43, 25 सितम्बर 2010 का अवतरण
सप्ताह की कविता | शीर्षक : ज़िन्दगी जब भी तेरी बज़्म में लाती है हमें रचनाकार: शहरयार |
ज़िन्दगी जब भी तेरी बज़्म में लाती है हमें ये ज़मीं चाँद से बेहतर नज़र आती है हमें सुर्ख़ फूलों से महक उठती हैं दिल की राहें दिन ढले यूँ तेरी आवाज़ बुलाती है हमें याद तेरी कभी दस्तक कभी सरगोशी से रात के पिछले पहर रोज़ जगाती है हमें हर मुलाक़ात का अंजाम जुदाई क्यूँ है अब तो हर वक़्त यही बात सताती है हमें