भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"आसमान के साए साए/ सर्वत एम जमाल" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
 
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
{KKGlobal}}
+
{{KKGlobal}}
 
{{KKRachna
 
{{KKRachna
 
|रचनाकार=सर्वत एम जमाल  
 
|रचनाकार=सर्वत एम जमाल  

10:43, 23 सितम्बर 2010 के समय का अवतरण

आसमान के साए साए
धूप ने क्या क्या रंग दिखाए

ज़ुल्म ने जब भी पर फैलाए
अर्श से उतरे फर्श पे साए

यह पौधे फल-फूल भी देंगे
शर्त है इनको सींचा जाए

सत्य, अहिंसा, भाईचारा
तुम क्या दूर की कौड़ी लाए

हम अंगारों पर बैठे थे
और वो फूले नहीं समाए

तुम तो थे इस आग पे नाजां
खद जलने पर क्यों पछताए

अज्म तो था इस खौफ ने तोड़ा
कौन घास की रोटी खाए

बच्चे सरगोशी करते हैं
इतिहासों को शर्म न आए

चेहरों की मुस्कान से डरिए
रात खड़ी है धूप नहाए

दीवारों तक कान का पहरा
दुश्मन हैं अपने हमसाए

मैं सर्वत जग रोशन कर दूं
कोई तो मेरा हाथ बंटाए

_______________________________