"पाँच पानियों का देश / अब्दुल बिस्मिल्लाह" के अवतरणों में अंतर
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01:17, 21 मई 2011 के समय का अवतरण
पानी का नाम मत लो यहाँ
कोई सुन लेगा
तो गज़ब हो जाएगा
जी नहीं
अब तो उन नदियों के
निशान भी नहीं रहे यहाँ
उन नदियों का नाम मत लो
कोई सुन लेगा तो गज़ब हो जाएगा
जी नहीं
वे सूखी नहीं घाम में
वे लुप्त नहीं हुईं पाताल में
उन्हें चुरा ले गया कोई परदेसी
अपनी पोली छड़ियों में भरकर
उस परदेसी का नाम मत पूछो
कोई सुन लेगा तो गज़ब हो जाएगा
जी नहीं
यहाँ हथियार नहीं चले
यहाँ नहीं हुई कोई बग़ावत
यहाँ सिर्फ़ बदमस्त हो गए
पानी के बिना
कुछ हाथी, कुछ घोड़े ओर कुछ परिन्दे
आगे क्या हुआ
कैसे बताया जाए
कोई सुन लेगा तो ग़ज़ब हो जाएगा
जी नहीं
सूरज का रंग
यहाँ भी पहले
लाल ही होता था
जब वह पाँच-पाँच पानियों के भीतर से
नहाकर निकलता था
अब कितना सफ़ेद हो गया है इसका चेहरा
कि जैसे काग़ज़ का कोई गोल टुकड़ा
चिपका दिया गया हो आकाश के सीने पर
मत पूछो
काग़ज़ में लिखी इबारत की व्याख्या
कोई सुन लेगा तो ग़ज़ब हो जाएगा
हवा में
बनी हुई है हरारत
लगातार
और वे चुप हैं
सड़क पर सड़ रहें हैं
खून के थक्के
और वे चुप हैं
खिड़कियों में
खुली हुई हैं
सहमी, डरी, उदास पुतलियाँ
और वे चुप हैं
वे कौन हैं ?
उनका नाम क्या है ?
मत पूछो, मत पूछो, बन्धु
वर्ना कोई सुन लेगा तो ग़ज़ब हो जाएगा