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"फूलों का काँटों-सा होना/ उदयप्रताप सिंह" के अवतरणों में अंतर

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कांटे तो कांटे होते हैं उनके चुभने का क्या रोना ।
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काँटे तो काँटे होते हैं उनके चुभने का क्या रोना ।
 
मुझको तो अखरा करता है फूलों का काँटों-सा होना ।
 
मुझको तो अखरा करता है फूलों का काँटों-सा होना ।
  
 
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युग-युग तक उनकी मिट्टी से फूलों की ख़ुशबू आती है
युग-युग तक उनकी मिट्टी से फूलों की खुशबू आती है
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जिनका जीवन ध्येय रहा है कांटे चुनना कलियाँ बोना ।  
 
जिनका जीवन ध्येय रहा है कांटे चुनना कलियाँ बोना ।  
 
  
 
बदनामी के पर होते हैं अपने आप उड़ा करती है
 
बदनामी के पर होते हैं अपने आप उड़ा करती है
 
 
मेरे अश्रु बहें बह जाएँ तुम अपना दामन न भिगोना ।
 
मेरे अश्रु बहें बह जाएँ तुम अपना दामन न भिगोना ।
 
  
 
दुनिया वालों की महफ़िल में पहली पंक्ति उन्हें मिलती है
 
दुनिया वालों की महफ़िल में पहली पंक्ति उन्हें मिलती है
 
 
जिनको आता है अवसर पर छुपकर हँसना बन कर रोना ।
 
जिनको आता है अवसर पर छुपकर हँसना बन कर रोना ।
 
  
 
वाणी के नभ में दिनकर-सा ‘उदय’ नहीं तू हो सकता है
 
वाणी के नभ में दिनकर-सा ‘उदय’ नहीं तू हो सकता है
 
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अगर नहीं तूने सीखा है नये घावों में क़लम डुबोना ।
अगर नहीं तूने सीखा है नये घावों में कलम डुबोना ।
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22:21, 17 अक्टूबर 2010 का अवतरण

काँटे तो काँटे होते हैं उनके चुभने का क्या रोना ।
मुझको तो अखरा करता है फूलों का काँटों-सा होना ।

युग-युग तक उनकी मिट्टी से फूलों की ख़ुशबू आती है
जिनका जीवन ध्येय रहा है कांटे चुनना कलियाँ बोना ।

बदनामी के पर होते हैं अपने आप उड़ा करती है
मेरे अश्रु बहें बह जाएँ तुम अपना दामन न भिगोना ।

दुनिया वालों की महफ़िल में पहली पंक्ति उन्हें मिलती है
जिनको आता है अवसर पर छुपकर हँसना बन कर रोना ।

वाणी के नभ में दिनकर-सा ‘उदय’ नहीं तू हो सकता है
अगर नहीं तूने सीखा है नये घावों में क़लम डुबोना ।