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− | + | बहना, तेरी चोटी में | |
− | + | फूलों का गजरा । | |
− | + | फूलों के गजरे ने | |
− | + | घर-भर महकाया, | |
+ | बतलाना, बतलाना | ||
+ | कौन इसे लाया ? | ||
+ | साँसों में छोड़ गया | ||
+ | ख़ुशबू का लहरा । | ||
− | + | गजरे में फूल खिले | |
− | + | बेला-जुही के, | |
+ | आँखों में तेरी हैं | ||
+ | आँसू खुशी के, | ||
+ | चेहरे पर बिखरा है | ||
+ | जादू सुनहरा । | ||
− | + | तुझ पर ही नज़रें हैं | |
− | + | छोटे-बड़ों की, | |
− | + | बात हुई बहना, | |
− | + | आज क्या अनोखी ? | |
− | + | क्या इसमें है कोई | |
− | + | राज बड़ा गहरा ? | |
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19:53, 7 नवम्बर 2010 का अवतरण
सप्ताह की कविता | शीर्षक : फूलों का गजरा रचनाकार: रमेश तैलंग |
बहना, तेरी चोटी में फूलों का गजरा । फूलों के गजरे ने घर-भर महकाया, बतलाना, बतलाना कौन इसे लाया ? साँसों में छोड़ गया ख़ुशबू का लहरा । गजरे में फूल खिले बेला-जुही के, आँखों में तेरी हैं आँसू खुशी के, चेहरे पर बिखरा है जादू सुनहरा । तुझ पर ही नज़रें हैं छोटे-बड़ों की, बात हुई बहना, आज क्या अनोखी ? क्या इसमें है कोई राज बड़ा गहरा ? </poem>