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<td>&nbsp;&nbsp;'''शीर्षक : जहाँ भर में हमें बौना बनावे धर्म का चक्कर<br>
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<td>&nbsp;&nbsp;'''शीर्षक : फूलों का गजरा<br>
&nbsp;&nbsp;'''रचनाकार:''' [[पुरुषोत्तम 'यक़ीन']]</td>
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&nbsp;&nbsp;'''रचनाकार:''' [[रमेश तैलंग]]</td>
 
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जहाँ भर में हमें बौना बनावे धर्म का चक्कर
+
बहना, तेरी चोटी में
हैं इंसाँ हिंदू, मुस्लिम, सिख बतावे धर्म का चक्कर
+
फूलों का गजरा ।
  
ये कैसा अल्पसंख्यक और बहुसंख्यक का है झगड़ा
+
फूलों के गजरे ने
करोड़ों को हज़ारों में गिनावे धर्म का चक्कर
+
घर-भर महकाया,
 +
बतलाना, बतलाना
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कौन इसे लाया ?
 +
साँसों में छोड़ गया
 +
ख़ुशबू का लहरा ।
  
चमन में फ़ूल ख़ुशियों के खिलाने की जगह लोगों
+
गजरे में फूल खिले
बुलों को खून के आँसू रुलावे धर्म का चक्कर
+
बेला-जुही के,
 +
आँखों में तेरी हैं
 +
आँसू खुशी के,
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चेहरे पर बिखरा है
 +
जादू सुनहरा ।
  
कभी शायद सिखावे था मुहब्बत-मेल लोगों को
+
तुझ पर ही नज़रें हैं
सबक नफ़रत का लेकिन अब पढ़ावे धर्म का चक्कर
+
छोटे-बड़ों की,
 
+
बात हुई बहना,
सियासत की बिछी शतरंज के मुहरे समझ हम को
+
आज क्या अनोखी ?
जिधर मर्जी उठावे या बिठावे धर्म का चक्कर
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क्या इसमें है कोई
 
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राज बड़ा गहरा ?
यक़ीनन कुर्सियाँ हिलने लगेंगी ज़ालिमों की फ़िर
+
किसी भी तौर से बस टूट जावे धर्म का चक्कर
+
 
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मज़ाहिब करते हैं ज़ालिम हुकूमत की तरफ़दारी
+
निज़ामत ज़ुल्म की अक्सर बचावे धर्म का चक्कर
+
 
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निकलने ही नहीं देता जहालत के अँधेरे से
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"यक़ीन" ऎसा अजब चक्कर चलावे धर्म का चक्कर
+
 
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19:53, 7 नवम्बर 2010 का अवतरण

Lotus-48x48.png  सप्ताह की कविता   शीर्षक : फूलों का गजरा
  रचनाकार: रमेश तैलंग
बहना, तेरी चोटी में
फूलों का गजरा ।

फूलों के गजरे ने
घर-भर महकाया,
बतलाना, बतलाना
कौन इसे लाया ?
साँसों में छोड़ गया
ख़ुशबू का लहरा ।

गजरे में फूल खिले
बेला-जुही के,
आँखों में तेरी हैं
आँसू खुशी के,
चेहरे पर बिखरा है
जादू सुनहरा ।

तुझ पर ही नज़रें हैं
छोटे-बड़ों की,
बात हुई बहना,
आज क्या अनोखी ?
क्या इसमें है कोई
राज बड़ा गहरा ? 
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