भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"दादी दांई दुनिया / नीरज दइया" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Neeraj Daiya (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: <poem>आयै दिन मंदगी मांय अधरझूल झोटा खावै है- दादी । ऐ झोटा पूरा ई’ज सम…) |
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
− | < | + | {{KKGlobal}} |
+ | {{KKRachna | ||
+ | |रचनाकार=नीरज दइया | ||
+ | |संग्रह= | ||
+ | }} | ||
+ | [[Category:मूल राजस्थानी भाषा]] | ||
+ | {{KKCatKavita}} | ||
+ | <Poem> | ||
+ | आयै दिन | ||
मंदगी मांय अधरझूल | मंदगी मांय अधरझूल | ||
झोटा खावै है- दादी । | झोटा खावै है- दादी । |
01:47, 24 अक्टूबर 2010 के समय का अवतरण
आयै दिन
मंदगी मांय अधरझूल
झोटा खावै है- दादी ।
ऐ झोटा
पूरा ई’ज समझो हणै
पण मन नीं भरै दादी रो !
दादी !
थारो जीवण सूं
क्यूं है- इत्तो लगाव ?
अबै कांई रैयो बाकी
जद कै थारा टाबर ई
उफतग्या है, नाक राखता-राखता
गळी-गवाड रै डर सूं ।
भायला, दादी दांई दुनिया ई
खावै है झोटा ।