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"अपना-अपना क्षितिज / केदारनाथ अग्रवाल" के अवतरणों में अंतर
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13:45, 9 जनवरी 2011 के समय का अवतरण
सब जी रहे हैं
अपने-अपने कंधे पर
अपना-अपना क्षितिज लिए
सुबह का और
शाम का और
दुपहर का और
रात का और
हरेक का क्षितिज
उसका क्षितिज है
उसका नाम और पता
उस पर लिखा है
यथार्थ और आदर्श के ये क्षितिज
जन्म और मरण के ये क्षितिज
आदमी के सत्य
और सनातन के क्षितिज हैं
मैं भी जी रहा हूँ
आदमी के सत्य और सनातन में
अपना क्षितिज लिए
मेरा नाम और पता
उस पर लिखा है
रचनाकाल: १०-०८-१९६५