"स्थितप्रज्ञ अपना देश / केदारनाथ अग्रवाल" के अवतरणों में अंतर
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| − | + | अविराम | |
| − | + | आक्रमण कर रहा है | |
| − | + | पाकिस्तान | |
| − | + | मान कर भी | |
| − | + | नहीं मान रहा | |
| − | + | राष्ट्र-संघ का आदेश | |
| − | + | अब भी कर रहा है वार | |
| − | + | दुर्निवार, | |
| − | + | धुँआधार | |
| − | सीमा | + | हत्या का प्रसार |
| − | + | अनवरत संहार | |
| + | भारतीय सीमा को | ||
| + | कर रहा है पार। | ||
| − | + | कहीं करता है | |
| − | + | आसमानी उल्कापात | |
| − | + | कहीं करता है विस्फोटक आघात | |
| − | + | कहीं करता है | |
| − | + | अबोध नगरों का विध्वंस | |
| − | + | कहीं करता है | |
| + | गरीब गाँवों का आहार | ||
| + | पाकिस्तान | ||
| + | ने छोड़ दी है पढ़ना कुरान | ||
| + | नमाजी नहीं रह गया | ||
| + | उसका ईमान | ||
| + | उस पर सवार है | ||
| + | कोई शैतान | ||
| + | वह हो गया है | ||
| + | सरकार की शक्ल में हैवान | ||
| − | + | मर रहे हैं उसके मारे | |
| − | + | गिरजा और अस्पताल | |
| − | + | जालिम कारनामों का | |
| − | + | बिछ गया है जाल | |
| − | + | इतना सब हुआ | |
| − | + | और हो रहा है | |
| − | + | इस पर भी | |
| − | + | अपना धैर्य भारत नहीं खो रहा है | |
| − | + | स्थितप्रज्ञ अपना देश | |
| − | + | सहता है कदाचार | |
| + | इस पर भी | ||
| + | करता नहीं अनाचार | ||
| − | '''रचनाकाल: | + | कर सकता है |
| + | उस पर | ||
| + | पुनर्वार वह उस पर बज्र-प्रहार | ||
| + | ले सकता है बदला बल से | ||
| + | दे सकता है हार | ||
| + | किंतु उसे रोके हैं उसके | ||
| + | जीवन के संस्कार | ||
| + | शांति शील के सत्य विचार | ||
| + | जब आएगा समय | ||
| + | और अवसर आएगा | ||
| + | बिना किए आक्रमण | ||
| + | न भारत बच पाएगा | ||
| + | तब वह युद्ध करेगा | ||
| + | बल का बदला बल से लेगा | ||
| + | युद्ध-विराम तोड़कर- | ||
| + | आगे उमड़ पड़ेगा | ||
| + | जहाँ धरेंगे चरण | ||
| + | समर-सैनिक-सेनानी | ||
| + | झंडा वहाँ गड़ेगा | ||
| + | हारेगा दल-बादल-पाकिस्तानी | ||
| + | जय का वरण करेगा भारतज्ञानी | ||
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| + | '''रचनाकाल: २९-०९-१९६५''' | ||
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23:05, 27 अक्टूबर 2010 का अवतरण
युद्ध-विराम के बाद भी
अविराम
आक्रमण कर रहा है
पाकिस्तान
मान कर भी
नहीं मान रहा
राष्ट्र-संघ का आदेश
अब भी कर रहा है वार
दुर्निवार,
धुँआधार
हत्या का प्रसार
अनवरत संहार
भारतीय सीमा को
कर रहा है पार।
कहीं करता है
आसमानी उल्कापात
कहीं करता है विस्फोटक आघात
कहीं करता है
अबोध नगरों का विध्वंस
कहीं करता है
गरीब गाँवों का आहार
पाकिस्तान
ने छोड़ दी है पढ़ना कुरान
नमाजी नहीं रह गया
उसका ईमान
उस पर सवार है
कोई शैतान
वह हो गया है
सरकार की शक्ल में हैवान
मर रहे हैं उसके मारे
गिरजा और अस्पताल
जालिम कारनामों का
बिछ गया है जाल
इतना सब हुआ
और हो रहा है
इस पर भी
अपना धैर्य भारत नहीं खो रहा है
स्थितप्रज्ञ अपना देश
सहता है कदाचार
इस पर भी
करता नहीं अनाचार
कर सकता है
उस पर
पुनर्वार वह उस पर बज्र-प्रहार
ले सकता है बदला बल से
दे सकता है हार
किंतु उसे रोके हैं उसके
जीवन के संस्कार
शांति शील के सत्य विचार
जब आएगा समय
और अवसर आएगा
बिना किए आक्रमण
न भारत बच पाएगा
तब वह युद्ध करेगा
बल का बदला बल से लेगा
युद्ध-विराम तोड़कर-
आगे उमड़ पड़ेगा
जहाँ धरेंगे चरण
समर-सैनिक-सेनानी
झंडा वहाँ गड़ेगा
हारेगा दल-बादल-पाकिस्तानी
जय का वरण करेगा भारतज्ञानी
रचनाकाल: २९-०९-१९६५
