भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"हिमालय ने पुकारा / गोपाल सिंह नेपाली" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 5: | पंक्ति 5: | ||
{{KKCatKavita}} | {{KKCatKavita}} | ||
<poem> | <poem> | ||
− | + | '''यह कविता अधूरी है। कृपया आपके पास हो तो इसे पूरा कर दें ।''' | |
− | हो | + | |
+ | शंकर की पुरी चीन ने सेना को उतारा | ||
+ | चालीस करोड़ों को हिमालय ने पुकारा | ||
+ | |||
+ | हो जाए पराधीन नहीं गंगा की धारा | ||
गंगा के किनारों को शिवालय ने पुकारा | गंगा के किनारों को शिवालय ने पुकारा | ||
− | |||
+ | हम भाई समझते जिसे दुनिया में उलझ के | ||
वह घेर रहा आज हमें बैरी समझ के | वह घेर रहा आज हमें बैरी समझ के | ||
चोरी भी करे और करे बात गरज के | चोरी भी करे और करे बात गरज के |
23:19, 20 जनवरी 2011 का अवतरण
यह कविता अधूरी है। कृपया आपके पास हो तो इसे पूरा कर दें ।
शंकर की पुरी चीन ने सेना को उतारा
चालीस करोड़ों को हिमालय ने पुकारा
हो जाए पराधीन नहीं गंगा की धारा
गंगा के किनारों को शिवालय ने पुकारा
हम भाई समझते जिसे दुनिया में उलझ के
वह घेर रहा आज हमें बैरी समझ के
चोरी भी करे और करे बात गरज के
बर्फों मे पिघलने को चला लाल सितारा
चालीस करोड़ों को हिमालय ने पुकारा