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मैं पूछता हूँ आसमान में उड़ते हुए सूरज से | मैं पूछता हूँ आसमान में उड़ते हुए सूरज से | ||
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मस्त हाथी की तरह | मस्त हाथी की तरह |
05:09, 30 अक्टूबर 2010 का अवतरण
मैं पूछता हूँ आसमान में उड़ते हुए सूरज से
क्या वक्त इसी का नाम है
कि घटनाए कुचलती चली जाए
मस्त हाथी की तरह
एक पुरे मनुष्य की चेतना?
कि हर प्रश्न
काम में लगे जिस्म की गलती ही हो?
क्यूं सुना दिया जाता है हर बार
पुराना चुटकूला
क्यूं कहा जाता है कि हम जिन्दा है
जरा सोचो -
कि हममे से कितनो का नाता है
जींदगी जैसी किसी वस्तु के साथ!
रब की वो कैसी रहमत है
जो कनक बोते फटे हुए हाथो-
और मंडी बिच के तख्तपोश पर फैली हुई मास की
उस पिलपली ढेरी पर,
एक ही समय होती है?
आखिर क्यों
बैलो की घंटियाँ
और पानी निकालते ईजंन के शोर अंदर
घिरे हुए चेहरो पर जम गई है
एक चीखतीं ख़ामोशी?
कोन खा जाता है तल कर
मशीन मे चारा डाल रहे
कुतरे हुए अरमानो वाले डोलो की मछलिया?
क्यों गीड़गड़ाता है
मेरे गाव का किसान
एक मामूली से पुलिसऐ के आगे?
कियो किसी दरड़े जाते आदमी के चीकने को
हर वार
कवीता कह दिया जाता है?
मैं पूछता हूँ आसमान में उड़ते हुए सूरज से