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"धूप / विनोद स्वामी" के अवतरणों में अंतर

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मेरे घर आने को
 
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तरसते हैं सब
 
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सूरज की पहली किरण
 
सूरज की पहली किरण
मेरे आंगन में आकर
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खोलती है आँख ।
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गोद में उठाकर
 
गोद में उठाकर
यही आंगन
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बाबा के फटे कुत्र्ते की
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लगता है
 
लगता है
आंधी हाथ मिला रही है
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आंधी
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घूमचक्करी खेल कर
 
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मासूम बच्चों की
 
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पुतलियों में
 
पुतलियों में
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मेरी बीवी के गालों
 
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बच्चों की जांघों
 
बच्चों की जांघों
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बरसात अपने रंग
 
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खूब दिखाती है।
 
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रोते हुए बच्चे को
 
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अचानक आई
 
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हंसी जैसा होता है।
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तब मुझे लगता है  
 
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मेरे घर को ।
 
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20:54, 31 अक्टूबर 2010 के समय का अवतरण

चाँदनी
आँधी और बरसात
मेरे घर आने को
तरसते हैं सब
सूरज की पहली किरण
मेरे आँगन में आकर
खोलती है आँख ।

चाँदनी को
गोद में उठाकर
यही आँगन
रात-भर करता है प्यार ।

आँधी का झोंका
भाग कर घुसता है
मेरे घर में
बाबा के फटे कुरते की
हिलती बाँह से
लगता है
आँधी हाथ मिला रही है
बाबा से ।

आँधी
आँगन में घंटों
घूमचक्करी खेल कर
मेरे सोते हुए
मासूम बच्चों की
पुतलियों में
रुकने का प्रयास करती है ।

मेरी बीवी के गालों
बच्चों की जांघों
माँ की झुर्रियों में
बरसात अपने रंग
खूब दिखाती है।
असल में
बरसात में मेरा घर
रोते हुए बच्चे को
अचानक आई
हँसी जैसा होता है ।

तब मुझे लगता है
धूप-चाँदनी
आँधी और बरसात
छोड़कर
नहीं जाना चाहते
मेरे घर को ।