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<td>&nbsp;&nbsp;'''शीर्षक : फूलों का गजरा<br>
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<td>&nbsp;&nbsp;'''शीर्षक : मैं अकेला<br>
&nbsp;&nbsp;'''रचनाकार:''' [[रमेश तैलंग]]</td>
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&nbsp;&nbsp;'''रचनाकार:''' [[सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"]]</td>
 
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बहना, तेरी चोटी में
+
मैं अकेला;
फूलों का गजरा
+
देखता हूँ, आ रही
 +
      मेरे दिवस की सान्ध्य बेला
  
फूलों के गजरे ने
+
पके आधे बाल मेरे
घर-भर महकाया,
+
हुए निष्प्रभ गाल मेरे,
बतलाना, बतलाना
+
चाल मेरी मन्द होती आ रही,
कौन इसे लाया ?
+
      हट रहा मेला
साँसों में छोड़ गया
+
ख़ुशबू का लहरा
+
  
गजरे में फूल खिले
+
जानता हूँ, नदी-झरने
बेला-जुही के,
+
जो मुझे थे पार करने,
आँखों में तेरी हैं
+
कर चुका हूँ, हँस रहा यह देख,
आँसू खुशी के,
+
      कोई नहीं भेला ।  
चेहरे पर बिखरा है
+
जादू सुनहरा
+
  
तुझ पर ही नज़रें हैं
+
शब्दार्थ:
छोटे-बड़ों की,
+
भेला = पुराने ढंग की नाव
बात हुई बहना,
+
आज क्या अनोखी ?
+
क्या इसमें है कोई
+
राज बड़ा गहरा ?
+
 
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23:35, 18 नवम्बर 2010 का अवतरण

Lotus-48x48.png  सप्ताह की कविता   शीर्षक : मैं अकेला
  रचनाकार: सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"
मैं अकेला;
देखता हूँ, आ रही
      मेरे दिवस की सान्ध्य बेला ।

पके आधे बाल मेरे
हुए निष्प्रभ गाल मेरे,
चाल मेरी मन्द होती आ रही,
      हट रहा मेला ।

जानता हूँ, नदी-झरने
जो मुझे थे पार करने,
कर चुका हूँ, हँस रहा यह देख,
      कोई नहीं भेला । 

शब्दार्थ: 
भेला = पुराने ढंग की नाव