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"बात जली / रमेश रंजक" के अवतरणों में अंतर

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माथे भर ताल में
 
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रोली की कमल-कली
 
रोली की कमल-कली
सम्बन्धों की ऐस धूप ढली ।
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सम्बन्धों की ऐसी धूप ढली ।
  
 
दुपहर की छाया-सा
 
दुपहर की छाया-सा
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फैल गया राहों तक
 
फैल गया राहों तक
 
घुल गए कुहासे में
 
घुल गए कुहासे में
परिल अनुभाव
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पारिल अनुभव
 
डूबे कंठस्थ सबक ।
 
डूबे कंठस्थ सबक ।
  
 
अब न कभी चहकेगी
 
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प्यास किसी ख़्याल में
 
प्यास किसी ख़्याल में
साँझ-सकारे पगली
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साँझ-सकारे पगली  
आँगन की होली-सी बात जली
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अब न कभी.....
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                      अब न कभी
 
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12:13, 19 दिसम्बर 2011 के समय का अवतरण

अब न कभी महकेगी
माथे भर ताल में
रोली की कमल-कली
सम्बन्धों की ऐसी धूप ढली ।

दुपहर की छाया-सा
स्नेहिल सिमटाव
फैल गया राहों तक
घुल गए कुहासे में
पारिल अनुभव
डूबे कंठस्थ सबक ।

अब न कभी चहकेगी
प्यास किसी ख़्याल में
साँझ-सकारे पगली
आँगन की होली-सी बात जली
                       अब न कभी ।