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"पिता के हाथ / मंगत बादल" के अवतरणों में अंतर
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और बचपन जब रोने लगता था | और बचपन जब रोने लगता था |
01:11, 19 अप्रैल 2011 के समय का अवतरण
किसी भी ठेस से
अहं जब आहत हो जाता था
और बचपन जब रोने लगता था
तो श्रम से पुष्ट
तुम्हारे खुरदरे हाथ
मेरे आंसू पोंछते हुए मुझे
कल्पना का साम्राज्य
सौंप देते थे
और "राजा बेटा" बना मैं
जो भी तुतले
और अर्थहीन शब्द कहता था
उन पर सपनों का
ताना-बाना बुनकर
तुम अपना दिल बहला लेते थे
आज!
उम्र की सड़क के
वर्षों लम्बे मील तय करके भी
कहाँ पा सका हूँ
उन खुरदरे हाथों-सा
प्यार और दुलार
कोहनियों तक जुड़े हाथ
फर्शी सलाम
या सजदे में झुके मस्तक
खूब मिलते हैं।
किन्तु इन सब के पीछे
सिर्फ स्वार्थ के फूल खिलते हैं!
कितनी घाटियाँ, मरुथल
और शिखरों को
पार करते हुए
यहाँ तक आया हूँ!
किन्तु अपनत्व भरे
उन खुरदरे हाथों का स्पर्श
कब भुला पाया हूँ!