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11:31, 14 दिसम्बर 2010 का अवतरण
सप्ताह की कविता | शीर्षक :महबूब-ए-मुल्क की हवा बदल रही है रचनाकार: कुमार पवन |
महबूब-ए-मुल्क की हवा बदल रही है, ताजीरात-ए-हिंद की दफ़ा बदल रही है. अस्मत लुटी अवाम की कहकहो के साथ, और अफज़लो की सज़ा बदल रही है. बारूदी बू आ रही है नर्म हवाओ में, कोयल की भी मीठी ज़बाँ बदल रही है. सुबह की हवाख़ोरी भी हुई मुश्किल, जलते हुए टायर से सबा बदल रही है. सियासत ने हर पाक को नापाक कर दिया, पंडित की पूजा मुल्ला की अजाँ बदल रही है. कहने को वह दिल हमी से लगाए है, मगर मुहब्बत की वज़ा बदल रही है. दुआ करो चमन की हिफ़ाजत के वास्ते, बागबानो की अब रजा बदल रही है। निगहबानी करना बच्चो की ऐ खुदा, दहशत में मेरे शहर की फ़ज़ा बदल रही है.