"(कविता) यह मृत्यु उपत्यका नहीं है मेरा देश / नवारुण भट्टाचार्य" के अवतरणों में अंतर
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प्रतिशोध नहीं चाहता | प्रतिशोध नहीं चाहता | ||
मुझे घृणा है उससे | मुझे घृणा है उससे | ||
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चेतना की बाट जोह रहे हैं आठ शव | चेतना की बाट जोह रहे हैं आठ शव | ||
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उन सबको दरकिनार कर | उन सबको दरकिनार कर | ||
अभी पढ़ी जा सकती है कविता | अभी पढ़ी जा सकती है कविता | ||
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20:48, 19 नवम्बर 2010 का अवतरण
जो पिता अपने बेटे की लाश की शिनाख़्त करने से डरे
मुझे घृणा है उससे
जो भाई अब भी निर्लज्ज और सहज है
मुझे घृणा है उससे
जो शिक्षक बुद्धिजीवी, कवि, किरानी
दिन-दहाड़े हुई इस हत्या का
प्रतिशोध नहीं चाहता
मुझे घृणा है उससे
चेतना की बाट जोह रहे हैं आठ शव
मैं हतप्रभ हुआ जा रहा हूँ
आठ जोड़ा खुली आँखें मुझे घूरती हैं नींद में
मैं चीख़ उठता हूँ
वे मुझे बुलाती हैं समय- असमय ,बाग में
मैं पागल हो जाऊँगा
आत्म-हत्या कर लूँगा
जो मन में आए करूँगा
यही समय है कविता लिखने का
इश्तिहार पर,दीवार पर स्टेंसिल पर
अपने ख़ून से, आँसुओं से हड्डियों से कोलाज शैली में
अभी लिखी जा सकती है कविता
तीव्रतम यंत्रणा से क्षत-विक्षत मुँह से
आतंक के रू-ब-रू वैन की झुलसाने वाली हेड लाइट पर आँखें गड़ाए
अभी फेंकी जा सकती है कविता
38 बोर पिस्तौल या और जो कुछ हो हत्यारों के पास
उन सबको दरकिनार कर
अभी पढ़ी जा सकती है कविता
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