भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"उस समय भी / रमानाथ अवस्थी" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: <poem>'''उस समय भी''' / रमानाथ अवस्थी जब हमारे साथी-संगी हमसे छूट जाएँ जब …)
 
 
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
<poem>'''उस समय भी''' / रमानाथ अवस्थी
+
{{KKGlobal}}
 
+
{{KKRachna
 +
|रचनाकार=रमानाथ अवस्थी
 +
}}
 +
{{KKCatKavita‎}}
 +
<poem>
 
जब हमारे साथी-संगी हमसे छूट जाएँ
 
जब हमारे साथी-संगी हमसे छूट जाएँ
 
जब हमारे हौसलों को दर्द लूट जाएँ
 
जब हमारे हौसलों को दर्द लूट जाएँ
जब हमारे आँसूओं के मेघ टूट जाएँ
+
जब हमारे आँसुओं के मेघ टूट जाएँ
  
 
उस समय भी रुकना नहीं, चलना चाहिए,
 
उस समय भी रुकना नहीं, चलना चाहिए,
पंक्ति 10: पंक्ति 14:
 
जब दुनिया रात के लिफाफे में बंद हो
 
जब दुनिया रात के लिफाफे में बंद हो
 
जब तम में भटक रही फूलों की गंध हो
 
जब तम में भटक रही फूलों की गंध हो
जब भूखे आदमियों औ ' कुत्तों में द्वन्द हो
+
जब भूखे आदमियों औ' कुत्तों में द्वन्द हो
  
 
उस समय भी बुझना नहीं  जलना चाहिए,
 
उस समय भी बुझना नहीं  जलना चाहिए,
बुझते हुए दीप से तूफ़ान ने कहा । </poem>
+
बुझते हुए दीप से तूफ़ान ने कहा ।  
 +
</poem>

20:58, 21 नवम्बर 2010 के समय का अवतरण

जब हमारे साथी-संगी हमसे छूट जाएँ
जब हमारे हौसलों को दर्द लूट जाएँ
जब हमारे आँसुओं के मेघ टूट जाएँ

उस समय भी रुकना नहीं, चलना चाहिए,
टूटे पंख से नदी की धार ने कहा ।

जब दुनिया रात के लिफाफे में बंद हो
जब तम में भटक रही फूलों की गंध हो
जब भूखे आदमियों औ' कुत्तों में द्वन्द हो

उस समय भी बुझना नहीं जलना चाहिए,
बुझते हुए दीप से तूफ़ान ने कहा ।