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बचपन / कविता गौड़

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कहीं खो गया है बचपन
गलियों में रो रहा है बचपन
 
होटलों में ढाबों में धो रहा है बरतन
काँच की चूड़ियों में पिरो रहा है शबनम
बीड़ियों में तंबाखू समो रहा है बचपन
 
गोदियों में बचपन खिला रहा है बचपन
योजनाएँ सारी ध्वस्त है
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