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हिच आए घोड़े
मन की दौड़ में
दौड़ते निगोड़े
घुड़सवार को ले उड़े
अब हवा के घोड़े
निगोड़े
सब कुछ छोड़े
रचनाकाल: १२-१०-१९७०