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"तुमने हँस के जो देखा जरा सा मुझे / कुमार अनिल" के अवतरणों में अंतर

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तुमने हँस के जो देखा जरा सा मुझे, हर तरफ़ चाँदनी की फ़सल हो गई ।
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तुमने हँस के जो देखा जरा सा मुझे,  
एक पल के लिए भी जो रूठ गए अपनी साँस भी मुझको गरल हो गई ।
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                  हर तरफ़ चाँदनी की फ़सल हो गई ।
तुम हमसे मिले, मिल कर बिछुड़े, हमें कविता की भाषा सरल हो गई ।
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एक पल के लिए भी जो रूठ गए  
सुख के-दुख के यूँ शेर मिले, ज़िन्दगी एक मुकम्मल ग़ज़ल हो गई ।
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                  अपनी साँस भी मुझको गरल हो गई ।
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तुम हमसे मिले, मिल कर बिछुड़े,  
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                  हमें कविता की भाषा सरल हो गई ।
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सुख के-दुख के यूँ शेर मिले,  
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                  ज़िन्दगी एक मुकम्मल ग़ज़ल हो गई ।

18:23, 4 दिसम्बर 2010 का अवतरण



तुमने हँस के जो देखा जरा सा मुझे,
                   हर तरफ़ चाँदनी की फ़सल हो गई ।
एक पल के लिए भी जो रूठ गए
                   अपनी साँस भी मुझको गरल हो गई ।
तुम हमसे मिले, मिल कर बिछुड़े,
                   हमें कविता की भाषा सरल हो गई ।
सुख के-दुख के यूँ शेर मिले,
                   ज़िन्दगी एक मुकम्मल ग़ज़ल हो गई ।