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<poem>
'''आग उगलती सदी मिली '''  
वृक्ष मिले
अपने फल खाते , पानी पीती नदी मिली मिली। जाने क्या हो गया समय को , आग उगलती सदी मिली मिली। सूरज और चांद के घर में ,बारूदों के ढेर मिले मिले।
कागज की तलवार हाथ में
लिये काठ के शेर मिले मिले।
सरकन्डों की राजसभा में
झुकी छांव बरगदी मिली मिली।
राम भरोसे मिली व्यवस्था
पत्थर मिले दूध पीते ,
अजगर सोते मिले महल में
केहरि टुकडों पर जीते जीते।
कुटिया की खेाटी किस्मत को
पग पग पर त्रासदी मिली मिली।
शीश कटी देहों के आगे
भाषण देते लोग मिले ,
धनवन्तरि की काया में भी
लगे भयानक रोग मिले मिले।
इतना हुआ बेरहम मौसम
नेकी मांगी बदी मिली ,
जाने क्या हो गया समय को
आग उगलती सदी मिली।
</poem>
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