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जो पै रहनि रामसों नाहीं। तौ नर खग कूकर सम बृथा जियत जग माहीं।। काम, क्रोध, मद, लोभ, नींद, भय, भूक, प्यास सबहीके।
मनुज देह सुर-साधु सराहत, सो सनेह सिय-पीके।।
 
सुर, सुजान, सुपूत, सुलच्छन गनियत गुन गरूआई।
 बिनु हरिभजन इँदारूनके फल तजत नहीं करूआई ।
कीरति कुल करतूति, भूति भलि, सील सरूप सलोने ।
 
तुलसी प्रभु अनुराग-रहित जस सालन साग अलोने।
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