भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
{{KKCatNavgeet}}
<poem>
'''लिखा समय ने'''
लिखा समय ने सारा मधुवन
लकड़कटों के नाम
कब आवोगे आओगे शंख बजाने वो मेरे घनश्याम !  बहरी रैन हुयेहुए, दिन गंूगे गूँगे
धूप समेटे पंख,
पानी पानी चीख चीख़ रहे हैं
पड़े रेत पर शंख
 
पान, फूल, पत्तों पर पसरी
सन्नाटे की शाम
काली झील बदलता मौसम
आसमान बदरंग
हंसो हंसों के भी बदल गये गए हैं रहन -सहन के ढंग  
चितकबरी चीलों के डैने
बांट बाँट रहे कोहराम  
बुलबुल मैना कोयल भूली
अपनी मीठी तान,
हुआ -हुआ के बोल बेसुरे खाये खाए जाते कान , मांग माँग रहा सूरज धरती से
उजियारे के दाम
कब आवोगे आओगे शंख बजाने वो मेरे घनश्याम? !
</poem>
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader
53,345
edits