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Kavita Kosh से
आप लगा लें जो मुँह पे नक़ाब
क्या है भला दर्पन का कसूर क़सूर
और हों पीने को बेचैन
उड़ने लगा है गुलाब का रंग
एक निगाह तो कर लें, हुज़ूरहुजूर!
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