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Kavita Kosh से
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इस बेरुखी बेरुख़ी से प्यार कभी छिप नहीं सकता तू भी है बेकरारबेक़रार, कभी छिप नहीं सकता
तू कुछ न कह, निगाहें कहे देती हैं सभी
रातों का यह खुमार ख़ुमार कभी छिप नहीं सकता
मजबूरियां हज़ार हों मिलने में प्यार को
हों जब निगाहें चार, कभी छिप नहीं सकता
पत्तों ने ढँक लिया हो तेरा बांकपन बाँकपन गुलाब
आयेगी जब बहार, कभी छिप नहीं सकता
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