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|रचनाकार=गुलाब खंडेलवाल
|संग्रह=कुछ और गुलाब / गुलाब खंडेलवाल
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[[category: ग़ज़ल]]
<poem>
दिन जिन्दगी के यों भी गुज़र जायँ तो अच्छा
हम इस खुशी के दौर में मर जायँ तो अच्छा
 
यों तो न रुक सकी कभी कूची तेरा, रंगसाज!
फिर भी कभी ये हाथ ठहर जायँ तो अच्छा
 
मज़मा उठा-उठा है, झुकी आ रही है शाम
मेले से अब हम लौट के घर जायँ तो अच्छा
 
चरणों में बिछी उनके पँखुरियाँ गुलाब की
कुछ आख़िरी घड़ी में सँवर जायँ तो अच्छा
<poem>
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