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|रचनाकार=गुलाब खंडेलवाल
|संग्रह=कुछ और गुलाब / गुलाब खंडेलवाल
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[[category: ग़ज़ल]]
<poem>
धोखा कहें, फरेब कहें, हादसा कहें
इस जिन्दगी को क्या न कहें, और क्या कहें!
कहने से बेवफ़ा तो बुरा मानते हो तुम
अब तुमको बेवफ़ा न कहें, और क्या कहें!
खुद बेहिसाब, हमसे हरेक बात का हिसाब
तुमको अगर खुदा न कहें और क्या कहें!
कहते हैं वे कि बाग़ में पतझड़ है अब, गुलाब!
हम तुमको 'अलविदा' न कहें और क्या कहें!
<poem>