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|रचनाकार=गुलाब खंडेलवाल
|संग्रह=हर सुबह एक ताज़ा गुलाब / गुलाब खंडेलवाल
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<poem>
आप और घर पे हमारे, क्या ख़ूब!
दिन में उग आयें हैं तारे, क्या ख़ूब!
 
हमने सूरत भी न देखी उनकी
दिल में रहते हैं हमारे, क्या ख़ूब!
 
हम खड़े हैं लहर पे बुत की तरह
और बहते हैं किनारे, क्या ख़ूब!
 
आखिर आ ही गए हम आपके पास
एक तिनके के सहारे, क्या ख़ूब!
 
उनकी आँखों में खिल रहे थे गुलाब!
हमने काग़ज़ पे उतारे, क्या ख़ूब!
<poem>
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