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|रचनाकार=गुलाब खंडेलवाल
|संग्रह=हर सुबह एक ताज़ा गुलाब / गुलाब खंडेलवाल
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[[category: ग़ज़ल]]
<poem>
बनी ज़िन्दगी भर का ग़म धीरे-धीरे
कभी कोई मंजिल मंज़िल भी मिलकर रहेगी बढाता बढ़ाता चल, ऐ दिल! क़दम धीरे-धीरे
थीं गुलज़ार ये बस्तियां जिनके दम से
गुलाब एक नाचीज़-सी चीज़ थे पर
गजब ग़ज़ब ढा रही है क़लम धीरे-धीरे 
<poem>
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