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{{KKRachna
|रचनाकार=गुलाब खंडेलवाल
|संग्रह=हर सुबह एक ताज़ा गुलाब / गुलाब खंडेलवाल
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<poem>
ख़त्म उनपर हैं सभी शोखियाँ ज़माने की
जिनको सूझी है सलीबों पे चढ़के गाने की
है समझने की नहीं और न समझाने की
आँखों-आँखों वो अदा तेरे लिपट जाने की
है वही शोख हँसी मुँह पे शमा के अब भी
फर्क आया न कोई मौत से परवाने की
कौन होगा तेरी गलियों में हम-सा ख़ानाख़राब
उम्र भर याद न आयी जिसे घर जाने की
और दो-चार घड़ी खेल उन आँखों में, गुलाब!
फिर मिलेगी न तुझे रात परीखाने की
<poem>